एक बार जरा क्षण भर को ऐसा सोचो कि चौबीस घंटे के लिए सारी कामना छोड़ दो -- सुख की कामना भी छोड़ दो। चौबीस घंटे में कुछ हर्जा नहीं हो जाएगा, कुछ खास नुकसान नहीं हो जाएगा।
ऐसे भी इतने दिन वासना कर-कर के क्या मिल गया है? चौबीस घंटे मेरी मानो। चौबीस घंटे के लिए सारी वासनाछोड़ दो। कुछ पाने की आशा मत रखो। कुछ होने की आशा मत रखो।एक क्रांति घट जाएगी चौबीस घंटे में। तुमअचानक पाओगे, जो है, परम तृप्तिदायी है।
जो भी है। रूखी-सूखी रोटी भी बहुत सुस्वादु है, क्योंकि अब कोई कल्पना न रही। अब किसी कल्पना में इसकी तुलना न रही। जैसा भी है, परम तृप्तिदायी है!यह अस्तित्व आनंद ही आनंद से भरपूर है।
पर हम इसके आनंद भोगने के लिए कभी मौका हीनहीं पाते। हम दौड़े-दौड़े हैं, भागे-भागे हैं। हम ठहरते ही नहीं। हम कभीदो घड़ी विश्राम नहीं करते!इस विश्राम का नाम ही ध्यान है। वासना से विश्राम ध्यान है। तृष्णा से विश्राम ध्यान है।
अगर तुम एक घंटा रोज सारी तृष्णा छोड़कर बैठ जाओ, कुछ न करो, बस बैठे रहो -- मस्ती आजाएगी! आनंद छा जाएगा! रस बहने लगेगा!धीरे-धीरे तुम्हें यह बात दिखाई पड़ने लगेगी, जब घंटे भर में रस बहने लगता है, तो फिर इसी ढंग से चौबीस घंटे क्यों न जीएँ?
परम प्यारे ओशो
अरी मैं तो नाम के रंग छकी
प्रवचन 10
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