NEWS UPDATE

Blogger Tips and TricksLatest Tips And TricksBlogger Tricks

Saturday, 19 March 2016

उपनिषद का अर्थ होता है, द सीक्रेट डाक्ट्रिन।उपनिषद का अर्थ होता है, गुह्य रहस्य। उपनिषद शब्दका अर्थ होता है, जिसे गुरु के पास चरणों में बैठकरसुना। और निर्वाण उपनिषद का नाम सून करतोमानों मन गद्द

उपनिषद का अर्थ होता है, द सीक्रेट डाक्ट्रिन।उपनिषद का अर्थ होता है, गुह्य रहस्य। उपनिषद शब्दका अर्थ होता है, जिसे गुरु के पास चरणों में बैठकरसुना। और निर्वाण उपनिषद का नाम सून करतोमानों मन गद्द-गद्द हो उठता है।

एक मिश्री कीमिठास तन-मन को घेर लेती है।सारे उपनिषद मूलत: किसी भी धर्म की शिक्षानहीं देते। ये इतने शुद्धतम व्यिक्तत्व है, कि इनके आगेकुछ कहने की जरूरत ही नहीं होती। एक-एक उपनिषदअपने में पूर्णता को समाएँ हुए हे।

उपनिषदों के सूत्र—कोई ऐसे नहीं है कि उन सून हो और पूर्ण हो जाओ। येतुम्हेह जागरूक करने के, साधना करने के,आप अंदरअमृत्व भरने के लिए उत्साओहित करते है। इस लिए एकबात कितनी अजीब है किसी भी उपनिषद केरचयिता का कोई पता नहीं है।

क्यों कि जो इतनेउचे शब्द जमीन पर उतार रहे है उनमें मैं का भाव है हीनहीं। न जाने कितने-कितने ऋषियों ने इन उपनिषदोंकी रचना में सहयोग किया होगा। लेकिन फिर भीइनका को रचयिता घोषित नहीं है। इस परम्पैरा मेंनिर्वाण उपनिषद भी है। इस में भी ऋषि किसी सूत्रमें अपना नाम घोषित नहीं करता।

इसलिए उपनिषदों पर बोले ओशो के अमृत वचन सुननेका अपना ही आनंद है। वह बातों-बातों में न जानेकितने गुह्म रहस्योंा में ले जाते है…….

आगे एक सूत्रआता है, बहुत ही क्रांतिकारी है—टू मच रेवत्थूशनरि।शायद यही कारण है कि निर्वाण उपनिषद परटीकाएं नहीं हो सकीं। यह निग्लेक्टेड उपनिषदों मेंसे एक है, उपेक्षित। जब पहली दफा मैंने तय कियाकि इस शिविर में इस पर बात करनी है, तो

अनेकलोगों ने मुझे पूछा कि ऐसा भी कोई उपनिषद है —निर्वाण उपनिषद? कठोपनिषद है, छांदोग्य है,मांडूक्य है—यह निर्वाण क्या है? यत्न बहुत हीखतरनाक है।

‘’बहुत अद्भुत है निर्वाण उपनिषाद। इस पर हम यात्राशुरू करते है और यह यात्रा दोहरी होगी।एक तरफ मैंआपको उपनिषद समझता चलूंगा। और दूसरी औरआपको उपनिषद चलूंगा। क्यों कि समझाने से कभीकुछ समझ में नहीं आता हे। करेंगे तभी समझ में आएगा।इस जीवन में जो भी महत्वकपूर्ण है, उसकास्वाहदचाहिए। अर्थ नहीं। उसकी व्यााख्यात नहीं,उसकीप्रतीति चाहिए। आग क्याव है, इतने से काफी नहींहोगा। आग जलानी पड़ेगी। उस आग में जलनापड़ेगाऔर बुझना पड़ेगा। तब प्रतीति होगी निर्वाणक्यास है।

‘’ओशो’निर्वाण उपनिषद तो समाप्त हो जाता है, लेकिननिर्वाण-निर्वाणउपनिषाद के समाप्तय होने सेनहीं मिलता। निर्वाण उपनिषद जहां समाप्ताहोता है, वहां से निर्वाण की यात्रा शुरू होती हे।इस आशा के साथ अपनी बात पूरी करता हूं कि आपनिर्वाण की यात्रा पर चलेंगे, बढ़ेंगे। और यह भरोसारखकर मैंने ये बातें कहीं है कि आप सुनने को, समझनेको तैयार होकर आए थे।

मैंने जैसा कहा है और जो कहा है, उसमें अगर रत्तीाभरभी आपकी तरफ से जोड़ने का ख्याेल आए, तो स्मैरणरखना कि वह अन्यातय होगा—मेरे साथ ही नहीं,जिसने निर्वाण उपनिषद कहा है, उस ऋषि केसाथभी।आपके ध्याान करने की चेष्टाभ ने मुझे भरोसादिलाया है कि जिनसे मैने बात कहीं है, वे कहनेयोग्य थे।निर्वाण उपनिषद समाप्त !निर्वाण की यात्रा प्रारंभ !

’’ओशोनिर्वाण उपनिषद

No comments:

Post a Comment